दो छोटी कविताएँ...



इकलौता पतझड़...

समय के किसी पेड़,
जो कि गदराया है,
युगों-कल्पों से,
के 'उन' दिनों की,
मुलायम शाख से.

तुमसे मिलने,
तुम्हे देखने,
तुमसे बतियाने,
के चन्द लम्हात,
कहो तो तोड़ के,
दे दूँगा.

पर अगर माँगोगे,
सारी यादों के हर्फ़.
तो कैसे रहूँगा जिंदा,
बन के ठूँठ?

सुना है,
पतझड़ भी नहीं आता,
'सुंदरबन मैन्ग्रोव्स' पर.





 तुम्हारा होना..ना होना..

एक कतरा आसमान,
छः-आठ तारे.
बेइन्तेहाँ  सुफेद चाँदनी.
बादलों के कुछ,
छोटे-छोटे वरक.
जो तुम ना हो,
पोस्टर के पीछे की,
सुनसान वीरानी है.

सड़क के गड्ढे,
तारकोल से तलाकशुदा,
महीन गिट्टियाँ.
मच्छरों का आशियाना,
जमा हुआ पानी.
पतंगों को खाती,
पीली स्ट्रीट लाईट.
जो तुम हो,
किसी सिंड्रेला की,
ताज़ी कहानी है.


....................................
यादें... 
....................................

जिन्दगी की चुस्कियों में,
किवाम, केवडा,
ईलायची हैं,
तुम्हारी यादें...

23 टिप्पणियाँ:

Manoj K said...

अविनाशजी

पहली कविता बोटानिकल सच को कितनी ख़ूबसूरती से पेश करती है, हर बोटनी के स्टुडेंट को पढनी चाहिए, बहुत बढ़िया सम्प्रेषण...

दूसरी कविता में जो आपने लिखा है बिलकुल contemporary है, मज़ा आया.

मनोज खत्री

प्रवीण पाण्डेय said...

इस सिन्ड्रेला की कहानी का अन्त कब आयेगा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दोनों रचनाएँ बहुत खूबसूरत और यादें बेहद खूबसूरत :):)

रचना दीक्षित said...

सभी कवितायेँ अच्छी लगीं और थोडा अलग भी

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अविनाश जी,
हम आज तक अपना याद को जिंदा रखने के कारन हरा भरा बने हैं... लोग पूछता है कि एतना कईसे याद कर लेते हो तुम...आज आपका कबिता सुनाकर बोलेंगे कि हम भी एगो सुंदरबन मैनग्रोव्स के जईसा हैं याद का हरियाली हमको ठूँठ होने से बचाए रखता है…बाकी का दोनों कबिता टीस अऊर याद का भावनामक बयान है... हमरा त आपके नज़्म के किवाम से आत्मा तक सुगंधित हो गया है..

Avinash Chandra said...

धन्यवाद सलिल जी,
टंकण की गलती की और ध्यान दिलाने का बहुत आभार. :)

और आप वाकई मैन्ग्रोव हैं :)

Avinash Chandra said...

आप सभी का बहुत बहुत आभार

देवेन्द्र पाण्डेय said...

कभी सुंदरबन मैन्ग्रोव, कभी सिंड्रेला की ताजी कहानी और कभी किमाम, केवड़ा, इलायची..! जिंदगी कितने रंग बदलती है..! कोई कितना सहेजे भला !

प्रतुल वशिष्ठ said...

समय के किसी पेड़ के 'उन' दिनों की मुलायम शाख से चन्द लम्हात कहो तो तोड़ के दे दूँगा.
पर अगर माँगोगे सारी यादों के हर्फ़ तो कैसे रहूँगा जिंदा बन के ठूँठ? .......... लाजवाब.
सुना है – पतझड़ भी नहीं आता, 'सुंदरबन मैन्ग्रोव्स' पर. .............. क्या कहने!
अपनी शिकायत अपनी कामनाओं को व्यक्त करने का ऐसा ही अंदाज़ वक्रोक्ति को जीवित रखे है. और वक्रोक्ति कविता का चरम स्तर है.

प्रतुल वशिष्ठ said...

तुम्हारा ना होना...
एक कतरा आसमान, छः-आठ तारे. /
बेइन्तेहाँ सुफेद चाँदनी. /
बादलों के कुछ, छोटे-छोटे वरक. /
जो तुम ना हो, पोस्टर के पीछे की, सुनसान वीरानी है.

तुम्हारा होना...
सड़क के गड्ढे, तारकोल से तलाकशुदा महीन गिट्टियाँ./
मच्छरों का आशियाना, जमा हुआ पानी. /
पतंगों को खाती, पीली स्ट्रीट लाईट. /
जो तुम हो, किसी सिंड्रेला की, ताज़ी कहानी है.

तुम्हारी यादें...
जिन्दगी की चुस्कियों में,
किवाम, केवडा, ईलायची हैं,
तुम्हारी यादें.

तीनों भाव-चित्र बिम्बों का नवीनतम पुलिंदा.

प्रतुल वशिष्ठ said...

आलोचना :
जो आपकी सिंड्रेला है वह यादों में बसी प्रेयसी हो गयी.
सड़क के गड्ढे मतलब आपके मन की पीड़ा
तारकोल से तलाकशुदा महीन गिट्टियाँ मतलब आपके संयोग के क्षण जो आज स्मृति पटल में बिखरे-बिखरे से हैं.
मच्छरों का आशियाना मतलब आपकी यादों का घर.
जमा हुआ पानी मतलब आपकी प्रेयसी का शाश्वत सौन्दर्य.
'पतंगे' मतलब आपका अपनी प्रेयसी के साथ बिताया समय.
'पीली स्ट्रीट लाइट' मतलब प्रेयसी का उद्दाम यौवन.
......... क्या अब इन सभी बिम्बों को जोड़कर पूरी तस्वीर बनाऊँ.?
इन समस्त भावों से एक अन्य अर्थ भी निकलता है वह यह कि आपकी प्रेयसी रात-बेरात आपसे मिलने आयी और वह जल्दबाजी में अपना जूता आपके पास छोड़ गयी जो स्मृति-रूप में आपने संजो रखा है. ..... नूतन सिंड्रेला फेसबुक पर शायद मिल जाए.
.......... वियोग के क्षण में कवि ने अपने भाव व्यक्त करने के लिये जो बिम्ब गढ़े हैं वे उपयुक्त हैं वह सड़क-दर-सड़क भटकता लग रहा है. घर में हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं दिखता.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन रचनाएँ ... सभी के सभी काबिले तारीफ़ ...

स्वप्न मञ्जूषा said...

are waah..!!
aap to bahut hi laajwaab likhte hain..
jaane kyun ham aaj tak vanchit rahe
sachmuch gazab ki rawaani hai aapki kalam mein..
behadd prabhavshaali..!
aap bahut bahut aage jaayenge...
asheerwaad hai...

Avinash Chandra said...

@मनोज जी,
बहुत बहुत शुक्रिया आपका इसे पढने के लिए.
@प्रवीण जी,
सिंड्रेला आए तो अंत आए..ना आए तो भी कोई मलाल नहीं :)
@ प्रतुल जी,
इतनी मेहनत से कविता पढने, साधने का धन्यवाद कहूँ, कम ही होगा.
आपने ज्ञान में कुछ वृद्धि की, मन हर्षित हुआ.
@अदा जी,
आपने पहले ही आशीष का स्नेह छलका दिया तो प्रणाम कह लूँ, उचित होगा वही.

शारदा अरोरा said...

donon kavitaayen man ko chhoo gaeen .

Asha Lata Saxena said...

दोनो प्रस्तुतियाँ बहुत भावपूर्ण हैं|
बधाई
आशा

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन रचनाएँ .

Avinash Chandra said...

धन्यवाद आप सबका

mridula pradhan said...

bahut achche.

mridula pradhan said...

bahut achche.

दिगम्बर नासवा said...

जिन्दगी की चुस्कियों में,
किवाम, केवडा,
ईलायची हैं,
तुम्हारी यादें..

बेहतरीन है अविनाश जी .... बाकी सब रचनाएँ भी खूबसूरत हैं ....

वर्तिका said...

avi... tumhara hona... naa honaa.. loved the simplicity of this.... :) toooooooooo gud... itni pyaari imagery hai ki bas kyaa kahen samajh hi nahin aa raha... chaliye ek naakam koshish karte hain explain karne ki ki how it feels to read that..

jaise aap ek pahaad par khade hokar doosre pahaad ke upar waale baadal ko dekh kar khush ho rahe hon.. aur tabhi vo baadal udtaa udtaa aap ke chere se hokar aage guzar jaaye... leaving u with ...a misty feel..amazed and delighted... :)

Avinash Chandra said...

बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी.

@वर्तिका... इतनी ख़ूबसूरत तो मेरी कविता न थी, इन ख़ूबसूरत शब्दों का...उसमे बसी कविताओं का शुक्रिया.