मर्जी तुम्हारी...

पाषाण ह्रदय,
पाषाण कहो.
या मुझको मेरा,
अवसान कहो.

समझो मरघट का,
शूल मुझे.
अकडा है मेरा,
अभिमान कहो.

ततैये का कह दो,
डंक मुझे.
है भटका मेरा,
ईमान कहो.

समझो बेजान सी,
लाश मुझे.
या मरा हुआ,
इंसान कहो.

मैंने सब,
तुम पर वारा था.
बस एक नियति,
से हारा था.

हाँ किया तो,
मैंने उचित नहीं.
हर चाहा पर,
होता घटित नहीं.

लोचन से सपने,
झर बैठे.
पुष्प ताल के,
तल बैठे.

अब तुमको,
समझाऊं तो क्या?
हिय चीर के,
दिखलाऊं तो क्या?

जो बीत गया,
बदलेगा नहीं.
ये जमा रक्त,
पिघलेगा नहीं.

किन्तु यह गरल,
मुझे दे दो.
तुम रहो पूर्ण,
मुझको बेधो.

तुमको टूटा,
देखूँ कैसे?
कुछ कनकलता,
का मान रखो.

जो चाहो तो,
बदनाम करो.
या करो नहीं,
बदनाम कहो.

अमृतवाणी सम,
सुन लूंगा.
बस अधर बसा,
मुस्कान कहो.

2 टिप्पणियाँ:

मुदिता said...

dil se nikli rachna.. dil tak pahunchi....gr8 expression..Keep It Up

Avinash Chandra said...

:)
shukriyaa