अनुरोध नियति से.....


मोड़ लेने दो मुझे,
धोती तनिक अपनी.
उतर लूँ जरा,
घुटनों तक गंगा में.

भर लेने दो अंजुल,
गंगाजल से मुझे.
देने दो फिर अर्घ्य,
आज दिवाकर को.

करने दो आचमन,
लेकर रुद्राक्ष हाथ में.
तुलसी कोट की,
परिक्रमा लगाने दो.

बजा लेने दो फिर,
आज मुझे शंख.
टेकने दो मत्था,
नंदी-कार्तिकेय को.

गणपति की सूँड,
आँखों से लगाने दो.
एडियाँ उठा कर,
घंटियाँ बजाने दो.

करने दो प्रज्ज्वलित,
सहस्त्र दीपों की आरती.
मुझे इन पावन,
सीढीयों पर आने दो.

देखने तो संध्या अरुण को,
भागीरथी में मोक्ष पाते.
तनिक यह शांतनु,
मुझे कंठ लगाने दो.

शिवालों घडियालों में,
रहने दो मुझे.
मोक्ष ना दो फिर,
मुझे काशी जाने दो.

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