मेरी गली...


अच्छा माँ चलता हूँ,
फिर जल्द ही आउंगा.
अपना ख्याल रखना,
दवा वक़्त पर लेना.
व्रत कम रखा करना.
मानोगी तो नहीं पर,
ठन्डे पानी से मत नहाना.
शाम को शाल ले कर ही,
बाहर निकला करना.
फोन करना अम्मा,
मैं भी करता हूँ,
बस वहाँ पंहुचते ही.

बडबडाता हूँ जाने कैसे,
रोकने के लिए आँसू.
जो होते हैं आमादा,
अम्मा के पास रहने को.

नहीं रुकते पर माँ से,
वो गिरा देती है नमक.
चख लेता हूँ उन्ही को,
कुछ कहने को बचता नहीं.

हर कदम कदम पर,
देखता हूँ मुड़ के.
वो भरी भारी आँखें,
वो हिलता हाथ उनका.

उफ़ यह तल्ख़ एहसास,
मुश्किल से चलना मुड़ना.
उस वक़्त वो गली जाने,
कितनी लम्बी लगती है.

गली मुड़ते ही एहसास,
माँ से चिपक जाते हैं.
काश ये गली थोड़ी,
लम्बी हुई होती.

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