लघुगीत...


मैं शोर मचाता रहता हूँ,
बिलावजह कान खाता रहता हूँ.
तंग करता हूँ तुम्हे,
सर्दी की दोपहर में.
पर सच कहूँ तुमसे?
दावा नहीं करता की,
तुम्हारा मनमीत हूँ.

बनाता हूँ चित्र तुम्हारे,
कहता हूँ बेढब से गीत.
मीन-मेख तुम्हारे,
कपड़ों के रंगों में.
पर यकीन मानो मेरा,
दावा नहीं करता,
तुम्हारा जीवन संगीत हूँ.

ऐसा नहीं की लगाव,
कम है मुझे तुमसे जरा भी.
यों तुम गीता हो मेरी,
पर मुझे आकाँक्षा नहीं.
पर कभी उदास हो,
तो गुनगुना लेना.
मैं लघुगीत हूँ.

1 टिप्पणियाँ:

वर्तिका said...

:) laghutaa mein deerghtaa... behad meethi aur pyaari rachana..