कल रात जब,
व्यस्त थे तुम.
चाँद के साथ,
दिल की बातों में.
और पकडे पकडे,
उसका हाथ.
चले आये छुपते-छुपाते,
बादलों से.
ताक में था मैं,
ताल किनारे डाले जाल.
फाँस ही ली थी मैंने,
परछाई तुम्हारे चाँद की.
हंगामा बरपा अल्ल सवेरे,
परछाई तो नाराज थी ही,
सूरज तक ने भौंहें तानी.
मेरा जाल तक मुझे,
धोखेबाज कहता है.
माना मैंने चाँद तुम्हारा,
चाँद की है ये परछाई.
मेरे से ना जायेगी रखी,
लो, संभालो भाई.

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