बीता साल मेरा...


सब कहते हैं,
बड़ा काबिल हूँ मैं.
मैं भी जानता हूँ,
मेरी मेहनत का साल,
ज़रा अच्छा गुजरा है.

मगर ये मेरी,
काबिलियत नहीं है.
दूर हूँ तो क्या?
रूह जानती है मेरी.
माँ ने इस बार,
नवरात्रों के साथ,
रोजे भी रखे होंगे.

जिस शहर रहता हूँ,
कहते हैं इस बार,
ज़रा गर्मी कम पड़ी है.
कमाल मेरा नहीं है,
मैं फ़रिश्ता नहीं कोई.

बस वो नेकी,
काटता रहता हूँ.
जो बाबू जी,
अपनी खुरपी से,
हर सुबह आज भी,
बोते होंगे.

1 टिप्पणियाँ:

श्रद्धा जैन said...

roje bhi rakhe honge
wah kabliyat meri nahi hai
kitna gahra koi likh sakta hai