ये सन्नाटा...........

अब शोर बहुत करता है,
चिल्लाता बहुत है.
तुम्हारे नहोने पर,
मौका क्यूँ गवांये,
ये सन्नाटा.....

मेरे कान फट जाते हैं,
हाथ लहुलुहान,
बदर पसीने से.
क्यूँ न अब जलाए,
ये सन्नाटा.....

प्लेटफार्म पर भी ,
बेफिक्र फिरता हूँ.
इंजन का हार्न,
क्यूँ अब सुनाये,
ये सन्नाटा....

लेटी तुम वहाँ हो,
और कोमा में मैं हूँ.
कोई क्यूँ पर सुने,
जलते मेरे दिल के,
जख्म क्यूँ दिखाए,
ये सन्नाटा......

0 टिप्पणियाँ: